मैं जीत गई

  • 10.3k
  • 2.2k

‘‘अम्मा आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की' ये सुन सरोजनी का दिल धक से रह गया। जब बेटा मेरे गर्भ में था, तब मैंने रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं को पढ़ा तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैंने उनके पूरे साहित्य को पढ़ डाला। उनके प्रभाव के कारण ही मैंने मेरे बेटे का नाम भी रविन्द्रन रखा। उसके बाद जब बेटी हुई तो उसका नाम निवेदिता रखा व निवि बुलाने लगी। भारती जी की ज्ञान की गुरू भी निवेदिता बहन ही थी। उन्हीं की याद में मैंने ये नाम रखा। निवेदिता के जन्म के चार साल में ही मूर्ति व सरोजनी में मनमुटाव अधिक बढ़ गया जो तलाक में जाकर खत्म हुआ।