कहानी- विश्वास राजनारायण बोहरे बाबू हरकचंद का ज़िंदगी भर का विश्वास एकाएक ढह गया। वे जब से म्युनिसपिल कमेटी की नौकरी में आये थे, ऐसा कभी नहीं हुआ था। उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी शान से गुजारी है । बाज़ार में कभी किसी व्यापारी ने उनकी बात नहीं टाली । लेकिन आज सेठ गहनामल ने उनके विश्वास को एक ही झटके में गहरे से तोड़ दिया । जब उनकी म्युनिसिपिल-कमेटी के पास नाके लगाने का अधिकार हुआ करता था तब कमेटी में हरक चंद जी ऐसी कुरसी पर थे कि वे नाकेदारों के कामकाज पर