भारती हंस पड़ी। बोली, 'यदि म्लेच्छ जीवनदान दे तो उसमें कोई दोष नहीं, लेकिन मुंह में जल देते ही प्रायश्चित्त होना चाहिए।' फिर जरा हंसकर बोली, 'अच्छा, मैं जा रही हूं। अगर कल समय मिला तो एक बार देखने आऊंगी।' यह कहकर जाते-जाते अचानक घूमकर बोली, 'और न आ सकूं तो तिवारी के अच्छा हो जाने पर उससे कह दीजिएगा कि अगर आप न आ जाते तो मैं न जाती। लेकिन म्लेच्छ का भी तो एक समाज है। आपके साथ एक ही कमरे में रात बिताने में वह लोग भी अच्छा नहीं मानते। कल सवेरे आपका चपरासी आएगा तो तलवलकर बाबू को खबर दे दीजिएगा। सब व्यवस्था करेंगे। अच्छा नमस्कार।'