बाँझ

  • 22.2k
  • 1
  • 6.5k

बांझ1.शाम. . .खिड़की से बाहर देखते हुए, अपनी आत्मा के दर्द को महसूस करना जैसे उसके जीवन का ढर्रा बन गया था। शाम, रात में बदलने लगी थी। उसने एक गहरी सांस के साथ महसूस किया कि उसकी जिंदगी में भी ऐसा ही कुछ जारी है। कुछ देर में अंधेरा छा जाएगा और वह उसी खिड़की पर खड़ी हुई एक अभिशप्त प्रेत छाया सी नज़र आती होगी। फिर वही रात, लम्बी रात, करवटें और छटपटाहट। गहरी उदासी और ठंडी आहें। अपने ही दिल की धड़कन का संगीत सुनना। किसी करवट चैन नहीं, किसी करवट चैन नहीं..... और उन शब्दों का