बीबी पचासा

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इस किताब में मैं पत्नी पे इस हास्य कविता को प्रस्तुत कर रहा हूँ गृहस्वामिनी के चरण पकड़ , कवि मनु डरहूँ पुकारी , धड़क ह्रदय प्रणाम करहूँ ,स्वीकारो ये हमारी । बुद्धिहीन मनु कर डाली ,भरहूँ कलेश विकार , भाई बंधू को दूर करत ,ऐसों तेरों आचार । बीबी को सलाम बंधू ,बीबी है महान। जय कटाक्ष मोह द्वेष गागर ,क्लेश कलह के भीषण सागर। क्रोध रूप कि अग्नि नामा ,सास ससुर का हौं कारनामा। महाबीर विक्रम के संगी ,पैसा लूटत धनत के तंगी। लाख टके की बात है भाई,सुन ले काका,सुन ले ताई। बाप बड़ा ना बड़ी है