इंद्रधनुष सतरंगा - 8

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रात भर ख़ूब बारिश हुई। लू-धूप की तपी धरती हुलस उठी। पेड़-पौधों पर हरियाली लहलहा उठी। गड्ढे और डबरे लबालब हो उठे। मौसम सुहाना हो गया। आज जहाँ सब लोग घर में बैठे रिमझिम का आनंद उठा रहे थे, वहीं कर्तार जी घुटनों तक लंबा जाँघिया पहने आँगन में भर आया पानी बाल्टी भर-भर उलीच रहे थे। उनका आँगन तालाब बन गया था। कर्तार जी ने पगड़ी उतार रखी थी इसलिए उनके बड़े-बड़े बाल कंधों तक बिखर गए थे। एकाएक कोई देखता तो उन्हें पहचानना मुश्किल होता। वह बाल्टी भर-भरकर फेंकते जा रहे थे और बड़बड़ाते जा रहे थे।