साहब-ए-करामात

(18)
  • 11.5k
  • 3
  • 4.7k

चौधरी मौजू बूढ़े बरगद की घनी छाओं के नीचे खड़ी चारपाई पर बड़े इत्मिनान से बैठा अपना चिमोड़ा पी रहा था। धुएँ के हल्के हल्के बुक़े उस के मुँह से निकलते थे और दोपहर की ठहरी हुई हवा में होले-होले गुम हो जाते थे। वो सुब्ह से अपने छोटे से खेत में हल चलाता रहा था और अब दिखा गया था। धूप इस क़दर तेज़ थी कि चील भी अपना अंडा छोड़ दे मगर अब वो इत्मिनान से बैठा अपने चमोड़े का मज़ा ले रहा था जो चुटकियों में उस की थकन दूर कर देता था।