अभिषप्त ज़िन्दगी

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ठण्डी बर्फीली हवा जैसे ही बदन को छूती सारे शरीर में कंपकंपी-सी दौड़ जाती । मगर उससे भी ज़्यादा चन्दा बाई के अब तक ना आने से ज़ोरा का दिल कांप रहा था । सुबह दस बजे की निकली अब तक तो उसे आ ही जाना चाहिये था । अभी कुछ ही देर में ग्राहक आने लग जायेंगे और फिर वही बोटियां नुचवाने का सिलसिला शुरू हो जायेगा । सब की सब व्यस्त हो जायेगी धन्धे में । किसी को चंदा बाई की हालत पूछने का समय नहीं मिलेगा । वह रह-रहकर मन को समझाती रही -‘आ ही जायेगी ।