उदय के जाने के बाद शुभ्रा की बड़ी सी मित्र-मंडली उसे इस पीड़ा से दूर रखने के सौ-सौ उपाय करती कभी उसे अपने घर बुला लेना, कभी उसके पास ही आ जाना, कभी किसी होटल में तो कभी किसी न किसी कार्यक्रम में वे सब उसे ज़बरदस्ती ले जाते शुभ्रा के मुख पर उदासी पसरी देखकर उसके मित्र भी उदास हो उठते “जीवन में सबके साथ यही होना है, कोई पहले तो कोई बाद में, सबको जाना है ---” काफ़ी दिनों तक तो वह मन ही मन घुटती रही फिर ऐसे क्षण भी आए जब वह स्वयं को रोक न सकी