उदित अपने स्वभावानुसार नौकरियाँ बदलता रहा था, विवाह के लगभग दो वर्षों के बाद शहर से बाहर भी दो-तीन वर्ष दोनों पति-पत्नी रह आए थे पास ही थे अत: या तो वे दोनों आ जाते अथवा उदय व गर्वी उनके पास एक-दो दिन के लिए चले जाते ठीक ही कट रहा था समय ! समय आवाज़ नहीं करता, बेआवाज़ ही सबका मोल-भाव चुका लेता है उदित जिस कंपनी में जाता, अपना स्थान बहुत जल्दी बना लेता और वहाँ एक ऊँची ‘पोज़ीशन’बना लेता शनै: शनै: यहीं से ही उसे अपना स्वयं का काम करने की धुन सवार हो चुकी थी, कितना समझाया गया किन्तु उसकी समझ में आया ही नहीं तब तक उदय भी नौकरी कर रहे थे और शुभ्रा भी