में बैठा सोचता रहा के मैंने इज़हार कर के गलती तो नही कर दी? या फिर जज़्बातों में आकर कुछ ज़्यादा ही बोल दिया, हालांकि हम दोनों के बीच जैसा ताल्लुक़ था उस से साफ था कि वो भी प्यार करती है।हिसाब किताब में ही अगला दिन हो गया,शाम को वो फिर से छज्जे पर थी, मैंने उस से इशारो में पूछा क्या मेरी बात का बुरा लगा? उसने न में जवाब दे दिया।और कहा दरअसल आपकी आधी बातें मेरे समझ मे ही नही आयी, पर सुन कर बहुत अच्छा लगा,सारा की बाते सुन कर मुझे हँसी भी आई और