तुम्हारी अधूरी कहानी

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तुम जब जब दिखती हो, कोई कहानी झांक जाती है। तुम बार बार यूं न दिखा करो। गर कलम चल गई तो ये न कहना कि जीने में इतना दर्द भी होता है। तुम दिखती हो, मैं तुम्हारी त्वचा पर बनी रेखाओं की इबारत पढने लगती हूं। तुम मुस्कुराती हुई कुछ अनकहा रखना चाहती हो, मैं वहां से उड़ती तितलियों को जाल में फांस लाती हूं। तुम्हारी आंखों में टिमटिमाते हैं असंख्य जुगनू..मेरी हथेलियां गीली होने लगती है। तुम आरपार दिखना चाहती हो, मैं परदे लेकर तुम्हारा पीछा करती हूं. तुम कौन हो जो मेरी चेतना में फड़फड़ाती हो अक्सर...