पश्चाताप - 2

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शहर के पॉश एरिया में भव्य और सुंदर सा बंगला, नौकर-चाकर, हर सुख-सुविधा और क्या चाहिए था उसे ! गेट से प्रवेश करते ही बड़ा सा बगीचा जिसमे देशी-विदेशी पुष्पों से ले कर अमलतास, गुलमोहर, खजूर और पारिजात के वृक्ष भी शान से खड़े बंगले की शोभा बढ़ा रहे थे मधुमालती के नन्हे-नन्हे पुष्पों के गुच्छे उसे देख मुस्कुरा रहे थे बंगले के भीतर की साज-सज्जा और रख-रखाव देख कर उसे ऐसा आभास हुआ जैसे वह किसी बंगले में नहीं, महल में आ गयी हो खुशी से वह फूली नहीं समा रही थी अपने भाग्य पर इतरा रही थी