मायामृग - 2

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सुधरना इतना आसान होता तो बात ही क्या है ? ” यह फुसफुसाहट उसके मन की भीतरी दीवारों पर सदा से टकराती रही है और वह सोचती रही है आखिर ये है कौन और क्यों उसे टोकती रहती है? अच्छी-खासी शिक्षित शुभ्रा पूरी उम्र इस फुसफुसाहट का अर्थ समझ पाने में असमर्थ रही जबकि वह उसे सदा चेताती रही थी जो कुछ भी उसके जीवन में घटित हुआ संभवत: न होता यदि उसने इसके भीतर छिपे गूढ़ अर्थ को समझ लिया होता किन्तु कैसे होता ? जब हम यह जान लेते हैं कि प्रत्येक घटना का होना सुनिश्चित है तब परिस्थितियों से उपजे संत्रास को तथा स्वयं को कोसना बंद कर देने में ही समझदारी लगती है