“मुझे मुक्ति दो ” यामिनी बोली चंद्रमा की चाँदनी में पिता और पुत्री दोनों खड़े थे पूर्णमासी की रात आकाश में चंद्र अपनी सोलह कलाओं के साथ मौजूद था उस प्रकाश में जो चमक थी काली यामिनी पर पड़ कर उसके सांवले रंग कोऔर चमका रही थी सामान्य दृष्टि से अलग खोई हुई उसकी आँखें अब हमेशा भ्रमित रहने लगी थीं अकेली छोड़ो तो अपने को खत्म करने दौड़ती वह बाहर फटी-फटी आँखों से देख रही थी उस समय उसके अंदर क्या हो रहा था कौन जाने ? पहले भी वह इस तरह फटी-फटी आँखों से देखती हुई बैठी रहती थी