शुग़ल

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हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपय का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इस लिए हम सब ख़ुशी से छः आने रोज़ाना पर सारा दिन पत्थर हटाते रहते थे। जो बारिशों के ज़ोर से साथ वाली पहाड़ियों से लुढ़क कर सड़क पर आ गिरते थे। पत्थरों को सड़क पर से परे हटाना तो ख़ैर इक मामूली बात थी। हम तो इस उजरत पर इन पहाड़ियों को ढाने पर भी तैय्यार थे। जो हमारे गिर्द-ओ-पेश स्याह और डरावने देवओं की तरह अकड़ी खड़ी थीं। दरअसल हमारे बाज़ू सख़्त से सख़्त मशक़्क़त के आदी थे।