समय इसी तरह बीतता रहा. मोहित के पापा की ज़िन्दगी इसी तरह दफ्तर, ट्यूशनों और कोचिंग कॉलेज के आसपास घूमती रही. मम्मी इसी तरह दफ्तर की नौकरी के साथ कविताओं और कवि सम्मेलनों की दुनिया में मगन रही. गाड़ी का ड्राइवर रख लिया गया. उसकी तनख़्वाह का इन्तज़ाम करने के लिए पापा एक और ट्यूशन पढ़ाने लगे और रात को साढ़े नौ बजे के बदले साढ़े दस बजे घर लौटने लगे.