चार साल बाद मैं इंडिया आता हूँ। उनसे विशेष रूप से मिलने जाता हूँ। इस दौरान उन्होंने अपनी कोठी बना ली है। खुश हैं। प्रकाश की शराब पीने की आदत और अधिक बढ़ चुकी है। वह दिन रात रुपया-पैसा इकट्ठा करने के चक्कर में पड़ा हुआ है। नहर का नाका खोलने के बदले किसान उसकी जेबें भर रहे हैं। बंसी वैसे तो आदत के अनुसार बनी-संवरी रहती है पर उसकी आँखें खाली-सी है। मैं उससे पूछता हूँ -