'मोहित, उठो. देखो कितना दिन चढ़ आया है.' शांतिबाई की आवाज़ कानों में पड़ी, तो मोहित ने ज़रा-सी आँखें खोलकर देखा - वाकई दिन काफ़ी चढ़ आया था. मगर बिस्तर छोड़ने का उसका मन कर नहीं रहा था. आज महीने का दूसरा शनिवार था और मोहित की स्कूल की छुट्टी थी. मोहित ने करवट बदली और आँखें बन्द किए-किए बिस्तर पर लेटा रहा. 'आज स्कूल की छुट्टी है, तभी तो इस वक्त तक वह आराम से बिस्तर में लेटा है, वरना अब तक तो वह तैयार होकर स्कूल भी पहुँच चुका होता. उठने में पाँच मिनट की भी देर हो जाए, तो मम्मी-पापा उसे जबरदस्ती उठाए बगैर नहीं रहते! मोहित सोच रहा था.