कलर-ब्लाइण्ड

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वह कलर-ब्लाइण्ड था। आम भाषा में कहा जाए तो वह रंगों को ठीक से पहचान नहीं पाता था...खास तौर से लाल और हरे में अन्तर करना उसके लिए मुश्किल था...लगभग नामुमकिन...। उसे तो सावन का अन्धा भी नहीं कहा जा सकता था, जिसे सब कुछ हरा दिखता है...। यह रंगों का अन्धापन उसे विरासत में मिला था। उसके पिता लाल और हरे को नहीं पहचान पाते थे, उसके दादा तो लाल-हरे के साथ-साथ पीले और नीले को भी नहीं पहचानते थे...। सो जब कोई इन रंगों की बात करता तो उसे अजीब लगता था...। कई बार उसे कोफ़्त होती थी, पर माँ जब तक ज़िन्दा रही, उसे यही कह कर सान्त्वना देती कि वह सिर्फ़ रंगों के लिए अन्धा है, कहीं पूरी दुनिया ही उसके लिए अन्धेरी होती तो वह क्या करता...?