मैं सच नहीं बोलूँगी.!

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तेज़ बिजली की कड़कड़ाहट से मेरी नींद टूट गई, खैर बड़ी मुश्किल से आई थी मैं बिस्तर पर उठकर बैठ गई, साथ वाले तकिए को देखा जों सूना पड़ा था, ऐसा लगा जैसे कितना कुछ कहना चाहता है मगर मैं सुनना ही नहीं चाहती, वो बारिश की आवाज़, बिजली का कड़कड़ाना और एक अजीब सी ख़ामोशी जो मेरे कमरे से पूरे शहर तक फैली हुई थी, अच्छी भी लग रही थी और कुछ याद भी दिला रही थी, मैंने देखा खिड़की खुली है और बारिश की फुहार कमरे के अंदर आ रही है मैं खिड़की बंद करने के लिए उठी,