सुबह का वक्त था। राजा महेंद्र सिंह राठौड़ अपने रथ में बैठकर रानी अरुणिमा सिंह के साथ नौका विहार हेतु अपने महल से बाहर जा रहे थे। अपनी रानी के साथ वो अकेले समय व्यतीत करना चाह रहे थे। इसलिए 2-4 विश्वासपात्र सेवकों को ही साथ रखा था। घोड़े द्रुत गति से आगे बढ़े चले जा रहे थे। आस पास का दृश्य बड़ा हीं मनोरम था।अचानक रथ के पहिए की कील निकल गई। आस पास नजदीक कोई बनाने वाला था भी नहीं। दोनों को अपने रथ से नीचे उतरना पड़ा। अभी धूप चढ़ हीं रही थी। दोपहर तक रथ के ठीक