कुछ दिन गुज़र गए। पंचवटी की एक ही लता कम हुई थी लेकिन पंचवटी के बाकी पौधे मुर्झाये लगे थे। बेजान, नीरस, अजीब सा सूनापन बिखरने लगा था। परीक्षा नजदीक आ चुकी थी पर पढने का मन किसी का नहीं कर रहा था। सबके जहन में सिर्फ और सिर्फ रंजना थी... "पता नहीं वो आगे पढ सकेगी या नहीं? "जिंदगी question marks बनती जा रही एक दिन रमा बोली "चलो स्टेडियम मे सब के सब वहाँ जाकर पढते हैं और "थोड़ा मन भी फ्रेश हो जाएगा"। फिर वहाँ थोड़ी मजाक मस्ती करेंगे। सौम्या ने सबकी तंद्रा तोडते हुए कहा "