जिम्मेदारी

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अपनी किताब हाथ में लिए मैं बहुत देर से बस पन्ने ही पलटे जा रही थी। दो महीने बाद मेरी एम.बी.ए प्रवेश की परीक्षा होने वाली थी।कई दिनों की मशक्कत के बाद आज मैंने ये दृढ़ निश्चय किया कि मैं आज से जरूर पढूँगी।फिर भी जाने क्यों किताब में मेरा मन ही नही लग रहा था। जैसे तैसे मैनें कुछ लाइनें पढ़ी ही थी कि किसी ने दरवाजे की घण्टी बजाई । मुझे तो जैसे इसी पल का इंतजार था। मैंने झट से अपनी किताब बन्द की और सरपट दरवाज़े की ओर दौड़ी कि शायद कोई मेहमान आया हो, तब