अदृश्य हमसफ़र - 7

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आज ममता की बारात आनी थी। सुबह सवेरे से ही गहमागहमी शुरू हो गयी थी। सभी के मन मे ऐसी अफरा तफरी मची थी जैसे न जाने आज का दिन कैसे कटेगा। दोपहर होने को आयी थी लेकिन अभी तक तेल उतारने की रस्म नही हो पाई थी। बड़ी माँ ने शोर मचा दिया था-- कब तुम सब मुन्नी का तेल उतारोगी और कब ये तैयार होगी। बारात जब ड्योढ़ी पर आकर खड़ी हो जाएगी।