गुलाबो

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" गुलाबो ’’साहेबपुर कमाल स्टेशन के पश्चिमी छोर पर चालीस -पचास बनजारे कुछ दिनों से अपने तम्बुओं को तान डेरा जमाए थे। तम्बू फटी-चिटी चादरों और टेन्ट को हाथ सिलाई कर बनाये गये थे। तम्बुओं में रहने वाले मर्द लम्बे तगड़े मुस्टंडे थे तो औरतें व नवयुवतियां सूडौल उरोजों और कसरती बदन वाली। वे औरतें चोली घांघरा पहने, नाक में बुल्की या नथिया और गले में चाँदी की मोटी हंसुली पहने रहती। जब वे चलती तो पांवों के पाजेब से रुन-झुन की मीठी आवाज निकलती। उनके छोटे-छोटे बच्चे मात्र गंजी चड्डी पहने