उसके हिस्से की जिंदगी

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सरलता नहीं सोचती थी उस चुके हुये आदमी में साहस और दृढ़ता बाकी थी। वह फैसले लेना साथ ही सुनियोजित योजनाओं पर विचार करना छोड़ चुका था। थोड़ी दूर तक टहल—डोल कर हजारी कालोनी के अपने आवास एच.आई.जी. पचास पर लौट आता था। चौंकाने वाला तथ्य है पॉंच किलो मीटर दूर कैसे चला गया। पैदल गया या रिक्शे से ? उसे अपने शहर की अल्प जानकारी थी। जिस मोहल्ले, मार्ग, मोड़ से प्रयोजन न हो वहॉं कभी नहीं गया।