एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 3

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आधुनिक युग के इस स्पर्धा में हर कोई मशीन की भाँति बस भागता जा रहा है। हर ओर धमाका चौकड़ी "बस तीव्र गति से भागता हुआ यह युग यंत्रवत बनता जा रहा है, किसी के पास किसी के लिए वक्त नही ं। जब समय मानव का साथ दे तो जिंदगी के क्षण पवित्र आशीर्वाद सा लगने लगता है और जो साथ न दे तो " मानो जिंदगी बोझ लगने लगती है " ऐसे ही झंझावातों को स्वीकारती क्षमा जब पहली बार युनिवर्सिटी में पढने आयी तो अकस्मात ही सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया। "सुंदरता की अप्रतिम मूर्ति"" कानों में