यज़ीद

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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिलकुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मामूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उस ने इस तूफ़ान का मर्दानावार मुक़ाबला किया था। मुख़ालिफ़ कुव्वतों के साथ वो कई बार भिड़ा था। शिकस्त देने के लिए नहीं, सिर्फ़ मुक़ाबला करने के लिए नहीं। उस को मालूम था कि दुश्मनों की ताक़त बहुत ज़्यादा है। मगर हथियार डाल देना वो अपनी ही नहीं हर मर्द की तौहीन समझता था।