जै सियाराम जिया...!

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बहुत दिन से लिखना चाह रही थी उन पर...!शायद तब से ही, जब से मिली ....!छोटा क़द, गोल-मटोल शरीर, गोरा रंग, चमकदार चेहरा, बड़ी-बड़ी मुस्कुराती आंखें, माथे पर गोल बड़ी सी सिन्दूरी बिंदी, गले में एक रुद्राक्ष की और एक स्फ़टिक की माला. सीधे पल्ले की साड़ी. उम्र यही कोई पचपन या छप्पन साल. लेकिन मानती खुद को बड़ा-बुज़ुर्ग हैं. ये है उनकी धज.उनके आने से पहले उनकी आवाज़ सुनाई देने लगती-" जै सियाराम भौजी.... बैठीं हौ? बैठौ-बैठो. ""जै राम जी की बेटा.. खूब पढो, खूब बढो...."हम जान जाते कि पाठक चाची आ गयीं. कुछ मिनटों में ही वे दरवाज़े