रीति रिवाज को अनुकूल बनाएं

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रीति रिवाज को अनुकूल बनाएं आर 0 के 0 लाल तुम यहां सोई हुई हो। तुम्हें पता भी नहीं कि मेहमान चले गए हैं। तुम बड़ी हो गई हो इतना भी नहीं होता कि मां के कुछ काम ही करा लो। मेहमान की खातिरदारी से थकी शबनम अपनी बड़ी बेटी पर चिल्लाई। बेटी बोली- “मैं नहीं काम कराने वाली। मेहमान आए थे तो उन्होंने जाते समय छोटे भाई को पैसा दिया था, मुझे तो नहीं दिया। वह तुम लोग को बहुत प्यारा है तो उसी से काम करा लो। फिर बोली क्या जमाना आ गया है! जब दो बच्चे