अनुरंजन को अपने सबसे घनिष्ठ दोस्त से इस विषय पर बातचीत करते हुए सचमुच अब काफ़ी मज़ा आने लगा था। अनुरंजन उसे दालान के भीतर वाले कमरे में ले गया और उससे कुछ राज़ बाँटने के अंदाज़ में कहने लगा, “ हाँ यार, मैंने इलाहाबाद को अपनी कर्म-स्थली बनाने की सोची है। वहीं रहकर स्कूली बच्चों को पढ़ाऊँगा और स्वयं का भरण-पोषण भी करूँगा। ख़ुद भी आगे की पढ़ाई करूँगा।”