मिट्टी के सनम

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चाहता तो नही था, पर तुम पीछे ही पड़ गए हो तो, बताना ही पड़ेगा कि प्यार के नाम से चिढ़ सी क्यों हो गयी है। जानते हो, जब भी कोई प्यार का नाम लेता है तो एक सूखा हुआ जख़्म हरा होकर फिर से जलने लगता है और जहन मेंउन दिनो की याद सहज ही ताज़ा हो जाती है, जब मेरी उससे मुलाकात हुयी थी।"किससे......?" समीर ने पूछा।"वही यार...!""कौन वही, पहेली न बुझाओ, साफ-साफ कहो न "" वही.. धूप से रंग, फूल से रूप और सुतवां नाक वाली काँच की गुड़िया सी लड़की...।""अच्छा...! वह... जो डेरे पर रहा करती