अपना गधा संपन्न था , पर सुखी नहीं। दर्द तो था , पर इसका कारण पता नहीं चल रहा था। मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत होते हुए भी , अजीब सी बैचैनी थी। सर झुकाते झुकाते उसकी गर्दन तो टेड़ी हो हीं गई थी , आत्मा भी टेड़ी हो गई थी। या यूँ कहें कि १० साल की नौकरी ने उसे ये सिखा दिया था कि सीधा रहे तो कोई भी खा लेगा। जीने के लिए आत्मा का भी टेढ़ा होना जरुरी है। गधे ने ये जान भी लिया था और मान भी लिया था। तो फिर ये शोक कैसा