मन का पंछी

  • 10.6k
  • 2
  • 1.9k

   सर्दियों की गुनगुनी धूप मुझे हमेशा ही आकर्षित करती रही है। आज भी इस महानगर की बालकनी में बैठी मैं मटर छील रही हूँ, मैथी पहले ही तोड़ कर रख ली। नीलेश को गाजर लाने के लिए बोला है, सर्दियों में गाजर का हलवा न बने ये संभव नहीं। माइक्रोवेव में खसखस बादाम का हलवा भी सेंकने के लिए रखकर मैं खुद को सेंक रही हूँ। जब भी बेटी घर आती है, मेरा मन डाँवाडोल होने लगता है। सुदूर अतीत के सागर में गोते खाते हुए मैं अक्सर कल्पना के पँख लगा भविष्य के आसमान में उड़ने लगती हूँ।मेरे