हिवड़ो अगन संजोय

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ऐ तवा ल्यो, कड़ाही ल्यो, चिमटा ल्यो, दरांत ल्यो .... बलखाती हुई आवाज़ के साथ वह लचककर मूलिया दर्जी की दुकान के नुक्कड़ से घूमी तो चौराहे पर मौजूद नज़रें उसी दिशा में उठ गईं! हर कदम के नीचे एक दिल बिछा हुआ था। ये पहले कदम पर किराने वाले दुलीराम का दिल जो रामोतार की बोतल में कड़वा तेल डालते हुए भूल गया देखना कि तेल बोतल में जा रहा है या जमीन पर। और दूसरे कदम पर ये दूधवाले हरिया का दिल कि उसकी एक मुस्कान की चोट से बहका और साइकिल भिड़ा दी, धूप में सुस्ता रही डोकरी की खाट से। अगले कदम के नीचे दिल बिछा था रामसरन धोबी का, जो कपड़े फैलाना छोड़ दिल पर हाथ रखकर बैठ गया। अब बिछे हुए दिलों की गिनती कुछ और आगे बढ़ती अगर रामू चाचा, डोकरी और मनसा धोबन की गालियां एकम-एक न हो गई होतीं।