जब हमला हुआ तो मोहल्ले में से अक़ल्लियत के कुछ आदमी तो क़त्ल होगए। जो बाक़ी थे जानें बचा कर भाग निकले। एक आदमी और उस की बीवी अलबत्ता अपने घर के तहख़ाने में छुप गए। दो दिन और दो रातें पनाह-याफ़्ता मियां बीवी ने क़ातिलों की मुतवक़्क़ो आमद में गुज़ार दीं मगर कोई न आया। दो दिन और गुज़र गए। मौत का डर कम होने लगा। भूक और प्यास ने ज़्यादा सताना शुरू किया।