पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अलील थे। रूह इस लिए कि मैंने दफ़अतन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इस लिए कि मेरे तमाम पट्ठे सर्दी लग जाने के बाइस चोबी तख़्ते के मानिंद अकड़ गए थे। दस दिन तक मैं अपने कमरे में पलंग पर लेटा रहा..... पलंग..... इस चीज़ को पलंग ही कह लीजिए जो लकड़ी के चार बड़े बड़े पाइयों, पंद्रह बीस चोबी डंडों और डेढ़ दोमन वज़नी मुस्ततील आहनी चादर पर मुश्तमिल है। लोहे की ये भारी भरकम चादर निवाड़ और सूतली का काम देती है। इस पलंग का फ़ायदा ये है कि खटमल दूर रहते हैं और यूं भी काफ़ी मज़बूत है, यानी सदीयों तक क़ायम रह सकता है।