काँटों से खींच कर ये आँचल - 5

(15)
  • 9k
  • 1
  • 4k

बैठा रहा गुमसुम सा बहुत देर तक, भोला मासूम सा सर झुकाए. बहुत देर बाद सर उठाया तो कहा, “एक बार मैंने महेश अंकल के सामने अपनी मम्मा को, ‘मम्मा’ बोल दिया था तो वह बहुत नाराज हुईं थीं.....”. अचानक याद आ गयी अपनी वो चचेरी बहन जो मुझसे सीधे मुहं बात नहीं करती थी. उसे भी ऐसे ही एक दिन पढ़ा रही थी कि चाचीजी ने आ कर किताब फ़ेंक दिया और कहा कि “खबरदार जो इस अभागी के साथ दुबारा सर जोड़े बैठे देखा”. आंसू मेरे भी टपक पड़े उन दोनों के साथ.