हवा में फड़फड़ाती चिट्ठी

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वह ओस से भीगी-धुली सुबह होगी. जब एक जंगल की पगडण्डी में हम यूँ ही टहलते हुए, बहुत दूर निकल जायेंगे. मैं एक खुमारी में चल रहा होऊंगा, तुम्हारे साथ की खुमारी में. तुम क्यों चलती रहोगी ये मैं सोचना भी नहीं चाहता क्योंकि जानता हूँ तुम्हें पहाड़, जंगल, पेड़-पौधों का साथ, सूरज, नीला आसमान सब बहुत पसंद है. मेरे साथ यूँ चलते जाने में मेरे प्यार के अलावा किसी भी कारण का होना सोच मैं इनसे ईर्ष्यालु नहीं होना चाहता. तुम मेरे साथ चल रही होगी मेरे लिये यही बहुत है.