साहित्य में वर्कशॉप –वाद यशवन्त कोठारी इन दिनों सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वर्कशाप वाद चल रहा है। भक्तिकाल का भक्तिवाद रीतिकाल का शृंगारवाद, आधुनिककाल के प्रगतिवाद, जनवाद, प्रतिक्रियावाद, भारतीयता वाद- सब इस वर्कशाप वाद यानि कार्यशाला काल में समा गये हैं। हर तरफ कार्यशालाओं, सेमिनारों, गोष्ठियों का बोलबाला है और लेखक, साहित्यकार इन वर्कशापों में व्यस्त हैं। कल तक जो लेखक साहित्यकार कहीं आना जाना पसंद नही करते थे वे आज हवाई जहाज के टिकट पर तृतीय श्रेणी में यात्रा कर वर्कशापों की शोभा बढ़ा रहे हैं। वैसे भी बुद्धिजीवियों की हालत यह है कि हवाई जहाज