नारी की विड़म्बना

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" कितनी बेचेन हैं, नारी प्रथा हमारी जहां कल तक "सीता" और "द्रोपदी" की भावनाओ का कत्ल हुआ छिन्न भिन्न हो गई इज्जत उनकी,'सीता' फिर भी कितने समय तक रावन की पन्हा में रही फिर भी ढ़की रही,रावन ने मर्यादा ना लांघी,...दुसरी और जहाँ 'द्रोपदी' का अपमान हुआ ,भरी सभा में अपनो के बीच कायरो द्वारा लज्जित़ हुई ,,और उन्ही अपनो का सर भरी सभा में झुका रहा,सभी ज्ञानी बडे़ बुजुर्ग तमाशा़ देखते रहे शर्म सार हो रही थी नजरे़ सभी की और वो रोती रही बिलखती रही,परंतु धेर्य बंधा