हिम स्पर्श - 77

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77 “नमस्ते। हमें आप अपना मित्र समझें। मैं याना और यह विक्टर।“ “नमस्ते। किन्तु...।” वफ़ाई ने प्रत्युत्तर दिया, किन्तु वह विस्मय से भरी थी। “आप हम पर विश्वास कर सकते हो। हम आपको कोई...।” विक्टर की बात सुनकर जीत ने कहा,”ठीक है मित्रों। किन्तु आप तो कहीं विदेश से आए लगते हो। यह हिन्दी?” “हमने सीख ली। हम जर्मनी से है। यह बातें तो होती ही रहेगी। क्या हम इस हिम को तोडने में आप की सहायता कर सकते हैं?” याना ने कहा। जीत ने उत्साह जताया,”वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात कही आपने। वफ़ाई यह लोग...।” जीत ने वफ़ाई