काँटों से खींच कर ये आँचल - 2

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कैसी उजड़ी चमन की मैं फूल थी. क्या अतीत रहा है मेरा क्या जीवन था, मानों तप्त रेगिस्थान में उगे कैक्टस. निर्जन बियावान कंटीली निरुद्देशय जीवन. अकेला, बेसहारा, अनाथ मैं और अकेलापन मेरी साथी मेरी हमदर्द. शायद गोद में ही थी जब एक सड़क दुर्घटना में अपने पापा और भाई को मैंने खो दिया. माँ की साड़ी के तहों में छिपी मैं बिना खरोंच जिन्दा बच गयी. माँ कुछ महीनों कोमा में जिन्दा रहीं, शायद मुझे अपना जीवन रस पिलाने हेतु ही.