जब हशमत ख़ां को मालूम होगया है कि चौधवीं (डोमनी) उस के बजाय मिर्ज़ा ग़ालिब की मुहब्बत का दम भर्ती है। हालाँकि वो उस की माँ को हर महीने काफ़ी रुपय देता है और क़रीब क़रीब तय हो चुका है कि उस की मिसी की रस्म बहुत जल्द बड़े एहतिमाम से अदा करदी जाएगी, तो उस को बड़ा ताऊ आया। उस ने सोचा कि मिर्ज़ा नौशा को किसी न किसी तरह ज़लील किया जाये। चुनांचे एक दिन मिर्ज़ा को रात को अपने यहां मदऊ किया।