आरुषि ........ आरुषि ........ हाँ मम्मा, मैं यहाँ हूँ l अपनी गुड़िया के साथ खेल रही हूँ l अच्छा, अच्छा अब जल्दी से तैयार हो जा, शाम हो गई है, चल मैं तेरी चोटी गूँथ दूँ l हाँ, पहले मेरी कविता तो सुन लो - बड़े मजे की गुड़िया मेरी, आँखें गोल - गोल मटकाती l धीरे - धीरे गाना गाती, चलने में करती है देरी l नाक है इसकी टेढ़ी - मेढ़ी, बड़े मजे की गुड़िया मेरी l अरे, वाह ! आरुषि तुम्हारी गुड़िया ने तो तुम्हें कविता लिखना सिखा दिया l