एक नींद हज़ार सपने

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उस नामुराद रात का दूसरा पहर भी बीत चुका था! दिन भर की चहलकदमी और तमाशे से ऊबी गली अब चाँद के साए में झपकियां ले रही थी और दूर किसी कोने से आती किसी कुत्ते की आवाज़ पर रह-रहकर जाग उठती थी। तमिल कॉलोनी की चौथी गली के तीसरे नम्बर का पीले रंग के एक कमरे वाला झुग्गीनुमा घर भी वहीं फर्श घुटने पेट में गढाए हुए, सिमटे पड़े सूर्या की रुक-रुककर आती सुबकियों से सिहर उठता। उसका सांवला, मासूम चेहरा जो कुछ पहले आंसुओं से तरबतर था, अब वहां सूखे आंसुओं से कई लकीरें बन गई थी जैसे तपती गर्मीं में नदी की धाराएँ सूखकर भी अपने निशान छोड़ जाती हैं। एक साइड से कटे होंठ पर छलछला आया खून, बह आई लार के साथ मिलकर, सूखकर जम चुका था।