बड़ी देर से खुद को शीशे मैं निहारते हुए बोली, "कि अब पहले से ज्यादा डरावनी लग रही हूँ । त्वचा बिलकुल काली हो गई हैं । और धीरे-धीरे कुत्ते के मॉस की तरह लटकने भी लगी हूँ । दाँत बिलकुल नुकीले और, ज्यादा बड़े हो गए है। उसे खुद से ही डर लगने लगा था। रात के बारह बज चुके हैं । जनता कॉलोनी वाले बेशर्म लोग सो गए होंगे, ज़रा वहाँ चलकर देखो तो कि आज कौन मेरा शिकार बनने वाला है। अपनी लाठी लेते हुए और से बजाते हुए वह जनता कॉलोनी की ओर चल पड़ी। ये कम्बख़त लोग अब मेरे