ख़्वाबगाह - 5

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तभी मुझे विनय के शादीशुदा होने का पता चला था। मेरे जन्म दिन के सातवें दिन। हम दोपहर के वक्त यूं ही मालवीय नगर में मटरगश्ती कर रहे थे। तभी एक गोलगप्पे वाले को देख कर विनय ने कहा – चलो गोलगप्पे खाते हैं। देखते हैं कौन ज्यादा खाता है। मैं भला कहां पीछे रहने वाली थी। मैंने पैंतीस खाये थे और विनय ने तीस पर ही हाथ खड़े कर दिये थे। गोलगप्पे वाकई बहुत अच्छे थे और गोलगप्पों का पानी जायकेदार था। तभी विनय ने प्रस्ताव रखा कि ऐसे और इतने सारे गोलगप्पे बहुत दिन बाद खाये हैं। तुम एक काम करो। घर वालों के लिए लेती जाओ।