माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे काफ़ी जायदाद एक बेवा और दो जवान बच्चियां छोड़ गया था आदमी पुरानी वज़ा का था। जूंही ये लड़कियां नौ दस बरस की हुईं उन को घर की चार दीवारी में बिठा दिया और पहरा भी ऐसा कि वो खिड़की तक के पास खड़ी नहीं हो सकतीं मगर जब वो अल्लाह को प्यारा हुआ तो उन को आहिस्ता आहिस्ता थोड़ी सी आज़ादी हो गई अब वह लुक छुप के नावेल भी पढ़ती थीं।